NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 5 क्या निराश हुआ जाए

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NCERT Solutions for Class 8 Hindi Chapter 5 क्या निराश हुआ जाए

NCERT Solutions for class 8 hindi  chapter 5 क्या निराश हुआ जाए

Class 8 Hindi Chapter 5 क्या निराश हुआ जाए

उत्तर- लेखक का यह स्वीकार करना कि लोगों ने उसे धोखा दिया है। यह उसकी पीड़ा को दर्शाता है। मगर फिर भी वह निराश नहीं है उसका मानना है कि समाज में अभी भी बहुत से लोग ऐसे हैं जो ईमानदार हैं। यदि वह अपने धोखे के बारे में समाज में बात करेगा तो वह उन लोगों का भी अपमान कर देगा जो ईमानदार हैं। उसे समाज में सुधार की उम्मीद है इसी कारण वह निराश नहीं है।

उत्तर– समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं और टेलीविज़न में अक्सर वहाँ की दिखाई गई घटनाएं हमें दिखाती हैं जिनमें लोगों ने बिना किसी लालच के दूसरों की सहायता की है या ईमानदारी से काम किया है। यह समाचार हमें सामाजिक सद्भावना और नेकी के मायने बताते हैं।

(i) मीडिया में हाल ही में एक घटना दिखाई गई, जिसमें कुछ स्वयंसेवक अपरिहार्य प्राकृतिक आपदा के पीड़ितों की सहायता के लिए समय और संसाधनों का समर्पण किया। अपनी सुरक्षा के खतरे का सामना करते हुए भी, ये स्वयंसेवक निरंतर काम करते रहे ताकि जरूरतमंद व्यक्तियों को भोजन, आश्रय, और चिकित्सा सहायता प्रदान की जा सके। उनके निःस्वार्थ प्रयास न केवल पीड़ित व्यक्तियों के दुख को कम किया बल्कि उन्होंने आपसी सहानुभूति की महत्वपूर्णता को भी याद दिलाया।

(ii) हाल ही में की गई खबर में, एक युवती ने सड़क पर एक खोए हुए पर्स में बड़ी राशि के पैसे पाए। अपने आप को बचाने के बजाय, उसने मेहनत से पर्स के मालिक की खोज की और सभी सामग्री सहित पर्स वापस कर दी। उसका ईमानदारी से किया गया काम न केवल पर्स के मालिक के आत्मविश्वास को पुनः स्थापित किया बल्कि समुदाय में भी अन्य लोगों को नैतिकता और ईमानदारी को महत्व देने की प्रेरणा मिली।

उत्तर– मैंने एक अनुभव साझा करूंगा जो मैंने अपने एक साथी के साथ देखा था। हम एक बार बस से सफर कर रहे थे और बस में कुछ अन्य यात्री भी थे। एक वृद्ध महिला बस में चढ़ी थी और उसके पास पैसे की कमी के कारण टिकट खरीदने के लिए परेशान थी। मेरे साथी ने उसे बिना किसी सोच-समझ के एक टिकट दे दिया। वह बहुत खुश हो गई और हमें आशीर्वाद दिया। उस दिन, मुझे यह सिखाया कि ईमानदारी से किया गया उपकार हमें और दूसरों को सम्मान और आत्मसम्मान की भावना देता है।

उत्तर– दोषों का पर्दाफ़ाश करना तब बुरा रूप ले सकता है जब हम किसी के आचरण के गलत पक्ष को उद्घाटित करके उसमें रस लेते है या जब हमारे ऐसा करने से वे लोग उग्र रूप धारण कर किसी को हानि पहुँचाए।

उत्तर– आजकल ‘दोषों का पर्दाफ़ाश’ के समाचार और कार्यक्रम बड़े रुचिकर बन चुके हैं। ये कार्यक्रम विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों पर रोशनी डालने का काम करते हैं। इनके माध्यम से, समाज को अन्याय और असहिष्णुता के खिलाफ आवाज़ बुलंद करने का मौका मिलता है। ये कार्यक्रम जनता को जागरूक करने, सरकार और नेताओं को जवाबदेही में लाने का माध्यम बनते हैं।

लेकिन कभी-कभी ये कार्यक्रम उत्तेजक होते हैं और गलत खबरें भी फैला सकते हैं, जो लोगों को गलत तरीके से प्रभावित कर सकती हैं। हालांकि, जरूरी है कि हम इन समाचारों को समझकर उनपर विश्वास न करें और उन्हें सत्यापित करें, ताकि हमें गलतफहमियों से बचा जा सके।
इसलिए, हमें समाचार पर ध्यान देने के साथ-साथ उसके सच्चाई को भी समझने की कोशिश करनी चाहिए, ताकि हम सच्ची जानकारी से संपर्क में रहें और सही निर्णय लें।

1.“सचाई केवल भीरु और बेबस लोगों के हिस्से पड़ी है। ” …………………
2. “झूठ और फरेब का रोज़गार करनेवाले फल-फूल रहे हैं।” ………………
3. ” हर आदमी दोषी अधिक दिख रहा है, गुणी कम। “………………….

उत्तर

1. परिणाम-लोगों की सच्चाई में आस्था नहीं रह जाएगीचारों ओर झूठ का बोलबाला होगा
2. परिणाम-ईमानदारी लुप्त होती जाएगी तथा भ्रष्टाचार बढ़ेगा
3. परिणाम-लोग एक-दूसरे पर विश्वास नहीं करेंगे,सच्चे व्यक्ति पर भी विश्वास करना कठिन हो जाएगा

दो लेखक और बस यात्रा

उत्तर– पहली वाली बस यात्रा जिसका शीर्षक ‘बस की यात्रा’ के लेखक हरिशंकर परिसाई हैं तथा दूसरी बस यात्रा जिसका शीर्षक ‘क्या निराश हुआ जाए’ के लेखक हजारी प्रसाद द्विवेदी हैं। दोनों लेखक मिलने पर इस प्रकार की बातचीत करते:
हरिशंकर परसाई: द्विवेदी जी नमस्कार! आपके के क्या हालचाल हैं।
द्विवेदी जी: परसाई जी नमस्कार मैं बिलकुल ठीक हूँ, क्या आप कुशल हैं।
परसाई: आप अपनी बस यात्रा से सम्बंधित कुछ संस्मरण सुनाएँ।

द्विवेदीजी: मेरी बस यात्रा वैसे तो डरावनी थी क्योंकि मैं परिवार सहित इसमें सफ़र कर रहा था। रात्री के समय बस सुनसान जगह पर ख़राब होकर रुक गयी। सहयात्रियों का कथन था कि इधर डकैती की बहुत घटनाएं होती हैं शायद ड्राईवर और कंडक्टर की उनके साथ कोई मिलीभगत है और ये लोग जानबूझकर बस ख़राब होने का नाटक कर रहें हैं। ऊपर से मेरे बच्चे भूख और प्यास के मारे परेशान कर रहे थे। लेकिन यात्रा का अंत सुखद रहा क्योंकि कंडक्टर डिपो से दूसरी बस ले आया था।
परसाई: द्विवेदी जी! हमारी बस यात्रा तो हास्य, रोमांच और जोखिमपूर्ण थी। बस एकदम पुरानी और खटारा, जिसका कुछ भी सही सलामत नहीं था। बस कई जगह ख़राब हुई। ऐसा लगता था कि शायद ही गंतव्य तक पहुँचा पायेगी। लेकिन हमने भी हिम्मत नहीं हारी, अंत तक सफ़र जारे रखा।

सार्थक शीर्षक

उत्तर– लेखक ने शीर्षक ‘क्या निराश हुआ जाए’ का चयन किया होगा क्योंकि यह उसके लेख की मुख्य धारा को संकेतित करता है, जो व्यक्तिगत अनुभवों और उसकी निराशा के विषय में है। हालांकि, कुछ अन्य शीर्षक जो इस लेख को संबोधित कर सकते हैं, वे हो सकते हैं:

“निराशा से नई आशा की ओर”
“उत्साह और निराशा के बीच”

उत्तर– हां, मुझे यह बात सहमती है कि आदर्शों की बातें करना आसान होता है, लेकिन उन्हें पूरा करना या उनके अनुसार चलना कठिन होता है।

बातें करने में तो हम सभी अच्छे होते हैं। हम सभी चाहते हैं कि दुनिया में अच्छाई हो, लेकिन जब बात किसी काम में आती है, तो वास्तविकता अलग होती है। हमें कई बार मुश्किलों का सामना करना पड़ता है और हमारी इच्छाओं को पूरा करने के लिए हमें बहुत मेहनत करनी पड़ती है।
आदर्शों को पूरा करना या उनके अनुसार चलना अधिकांश समय में चुनौतीपूर्ण होता है। कई बार हमारे सामाजिक, परिवारिक, और व्यक्तिगत परिस्थितियों के कारण हम अपने आदर्शों को पूरा नहीं कर पाते हैं। यह अक्सर हमें हमारे उद्देश्य की ओर बढ़ने में बाधा डालता है।

सपनों का भारत

“हमारे महान मनीषियों के सपनों का भारत है और रहेगा। ”

उत्तर– हमारे महान विद्वानों ने भारत के सपने कई तरीकों से देखे हैं। उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में विकास और समृद्धि की दिशा में अपने सपने देखे हैं। वे राष्ट्रीय एकता, सामाजिक न्याय, और वैज्ञानिक अग्रणीता के साथ-साथ गरीबी, अन्याय, और अंधविश्वास को खत्म करने की भी चिंता करते रहे हैं। उन्होंने आर्थिक और सामाजिक उत्थान के लिए नई और अद्भुत योजनाओं की रचना की है। वे एक ऐसे समाज की आवश्यकता को महसूस करते थे जो सभी वर्गों के लोगों के लिए समान अवसरों का संरक्षण करता है।

उत्तर-मेरे सपनों के भारत में सभी नागरिकों को समानता, समरसता और स्वतंत्रता का अधिकार होना चाहिए। यहाँ हर व्यक्ति को अच्छी शिक्षा, स्वस्थ्य सेवाएँ, और गरीबी से मुक्ति के अधिकार को प्राप्त होना चाहिए।
-मेरे सपनों के भारत में तकनीकी विकास और आधुनिकीकरण का निरंतर ध्यान रहे। यहाँ नवाचार, अद्भुत विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विशेषज्ञता हो।
-मेरे सपनों के भारत में समाज का समृद्धिशील विकास हो, जहाँ सभी धर्म, जाति, और लिंग के लोगों को समानता के साथ एकसाथ रहने का अधिकार हो।
-मेरे सपनों के भारत में प्राकृतिक संपदा का संरक्षण हो, जहाँ पर्यावरण संरक्षण, जल संरक्षण, और ऊर्जा संरक्षण को प्राथमिकता दी जाए।

यह मेरा सपना है कि हमारा भारत एक ऐसा देश हो, जो अपने नागरिकों को समृद्धि, सुरक्षा, और सम्मान से भरपूर जीवन जीने का अवसर प्रदान करता है।
मेरे सपनों का भारत ऐसा होना चाहिए जहाँ समानता, सबके लिए समान शिक्षा, सबके लिए सुलभ एवं सस्ता स्वास्थ्य, हरएक मामले में आत्मनिर्भर और शक्तिशाली जिसको कोई भी दूसरा देश आँख न दिखा सके।

भाषा की बात

उत्तर– द्वंद्व समास के बारह उदाहरण –

  • सुख-दुख
  • भूख-प्यास
  • हँसना-रोना
  • आते-जाते
  • राजा-रानी
  • चाचा-चाची
  • सच्चा-झूठा
  • पाना-खोना
  • पाप-पुण्य
  • स्त्री-पुरूष
  • राम-सीता
  • आना-जाना

उत्तर

वयाक्तिवाचक संज्ञाजातिवाचक संज्ञाभाववाचक संज्ञा
मुसलमानड्राईवरईमानदारी
तिलकहिन्दूदोष
रवीन्द्रनाथआदमीसूख
मालवीयद्रविड़गुण
भारतवर्षदेशअच्छा
कंडक्टरमुस्लिमझूठ
गांधीपतिसच्चाई

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