Class 8 Sanskrit Grammar Book Solutions वर्णविचारः – Latest Syllabus

Latest Updated : January 2024

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Class 8 Sanskrit Grammar (व्याकरण) – वर्णविचारः

Class 8 Sanskrit Grammar वर्णविचारः

Sanskrit Vyakran Class 8 Solutions वर्णविचारः

‘सम्’ उपसर्ग पूर्वक कृ धातु से क्त प्रत्यय होने पर संस्कृत शब्द बनता है जिसका अर्थ है वह भाषा जो पूर्णतया नियमबद्ध हो, यही कारण है कि आज के युग में संगणक पर जो भाषा खरी उतरती है वह एकमात्र संस्कृत भाषा है। महर्षि पाणिनि ने अष्टाध्यायी के सूत्रों के माध्यम से इसके समस्त नियमों को दर्शाया है बाद में महर्षि कात्यायन (वररुचि) तथा महर्षि पतञ्जलि ने क्रमशः वार्तिक और भाष्य के माध्यम से उसे सुसमृद्ध किया है। संस्कृत विश्व की प्राचीनतम भाषा है। संसार का प्राचीनतम साहित्य ऋग्वेद वैदिक संस्कृत में ही रचा गया है। रामायण तथा महाभारत आदि ग्रन्थ लौकिक संस्कृत में रचे गए हैं। महर्षि वाल्मीकि को आदिकवि माना जाता है और उनकी रामायण को आदिकाव्य माना जाता है। संस्कृत भाषा के व्याकरण को जानने के लिए सबसे पहले उसके वर्णों/अक्षरों को जानना आवश्यक है। इसीलिए हम संस्कृत व्याकरण का आरम्भ संस्कृत के वर्णों से कर रहे हैं।

  1. स्वर
  2. व्यञ्जन
  3. अयोगवाह
  • स्वर / अच्
    जिन वर्णों का उच्चारण किसी दूसरे वर्ण की सहायता के बिना ही होता है, उन वर्णों को स्वर या अच् कहते हैं। शिवसूत्रों के अनुसार अच् निम्नलिखित हैं-
  • अ, इ, उ (अइउण्)
  • ऋ, ल (ऋलुक्)
  • ए, ओ (एओङ्)
  • ऐ, औ (ऐऔच्)
  • इन वर्गों के ह्रस्व, दीर्घ और प्लुत तीन-तीन प्रकार हैं वे भी वर्गों में गिने जाते हैं। सामान्यतः ह्रस्व तथा दीर्घ स्वर तेरह हैं। यथा-अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ऋ, लु, ए, ऐ, ओ, औ = 13
  • इनमें 9 प्लुत वर्णों को (अ ३, इ ३, उ ३, ऋ ३, लु ३, ए ३, ऐ ३, ओ ३, औ ३) सम्मिलित कर लिया जाए तो स्वरों की कुल संख्या 22 हो जाती है।

स्वरों के भेद-हस्व, दीर्घ, प्लुत

उच्चारण की दृष्टि से अ, इ, उ, ऋ, लु इन पांच वर्षों के उच्चारण में जो समय लगता है उसे एक मात्रा माना जाता है। इन्हें ह्रस्व स्वर कहा जाता है। लु को छोड़कर शेष चार (अ, इ, उ, ऋ) को बोलते समय दुगुना समय लगाया जाए तो यही ह्रस्व स्वर दीर्घ हो जाते हैं। आ, ई, ऊ, ऋ दीर्घ स्वर हैं। ए, ओ, ऐ, औ भी दीर्घ स्वर हैं क्योंकि इनके उच्चारण में भी दो मात्राओं का समय लगता है। ये मूल स्वरों (अ, इ, उ) के मेल से बने हैं अतः इन्हें संयुक्त स्वर कहा जाता है। इनमें भी ए, ओ को गुण स्वर तथा ऐ, औ को वृद्धि स्वर कहा जाता है।
प्लुत स्वरों के उच्चारण में तीन मात्राओं का समय लगता है। संक्षेप में स्वरों का विभाजन निम्न प्रकार से है-

  • ह्रस्व (मूल) स्वर -अ, इ, उ, ऋ, लु ।
  • संयुक्त स्वर – ए, ऐ, ओ, औ । अ + इ = ए, अ + ए = ऐ, अ + उ = ओ, अ + ओ = औ |
  • गुण स्वर – अ, ए, ओ ।
  • वृद्धि स्वर – आ, ऐ, औ ।
  • दीर्घ स्वर – आ, ई, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ (लु वर्ण का दीर्घ नहीं होता है।)
  • प्लुत स्वर – अ ३, इ ३, उ ३, ३, लु ३, ए ३, ऐ ३, ओ ३, औ ३।

(ii) अन्तःस्थ – य् र् ल व् = 4
ये चार अन्तःस्थ कहलाते हैं। इनमें जिह्वा पूरा स्पर्श नहीं करती है, स्पर्श करते समय थोड़ा सा स्थान शेष रह जाता है, अतः ये स्वर तथा व्यञ्जन दोनों के बीच के वर्ण हैं पर इनकी गणना हम व्यञ्जन में ही करते हैं और इन्हें अन्तःस्थ की संज्ञा देते हैं।

(iii) ऊष्म – श् ष् स् ह् = 4
ये चार ऊष्म वर्ण हैं, इनके उच्चारण में जिह्वा मुख के किसी भाग के साथ रगड़ खाती है तथा ऊष्मा (गर्मी) पैदा होती है। अतः इन्हें ऊष्म नाम दिया गया है।

अयोगवाह

जिन वर्णों का उच्चारण स्वरों की सहायता के बिना नहीं हो सकता तथा जो स्वरों के साथ मिलकर स्वरों के बाद ही बोले जाते हैं वे अयोगवाह कहलाते हैं। वे स्वरों के पहले नहीं बोले जा सकते। अयोगवाह तीन हैं। यथा-

(i) अनुस्वार – किसी स्वर के बाद न् या म् के स्थान पर अनुस्वार आता है। जैसे- सः फलम् खादति – सः फलं खादति। हंसः, कंसः।

(ii) अनुनासिक – इसका प्रयोग स्वर के बाद होता है जैसे- हँसना, पुंल्लिङ्गम्।

(iii) विसर्ग (:) – विसर्ग का प्रयोग किसी स्वर के बाद होता है। इसके उच्चारण में ‘ह्’ की ध्वनि पैदा होती है। जैसे- रामः, हरिः इत्यादि।

(क) वर्ण
(ख) वर्णमाला
(ग) स्वर
(घ) व्यञ्जन

उत्तराणि: = (ख) वर्णमाला

(क) स्वरः
(ख) व्यञ्जन
(ग) अयोगवाह
(घ) पदं

उत्तराणि: = (घ) पदं

(क) अण्
(ख) अट्
(ग) अल्
(घ) अच्

उत्तराणि:
(घ) अच्

(क) आ, इ, उ, ऋ, लृ
(ख) अ, इ, उ, ऋ, लृ
(ग) अई उ ऋ लृ
(घ) आई ए ऋ

उत्तराणि:
(ख) अ, इ, उ, ऋ, लृ

(क) सप्त
(ख) अष्ट
(ग) षट्
(घ) पञ्च

उत्तराणि: (ख) अष्ट

(क) व्यञ्जनानि
(ख) प्लुत्
(ग) अनुनासिक
(घ) अनुस्वार

उत्तराणि: (क) व्यञ्जनानि

(क) य्, ह्, र्, व्
(ख) य्, र्, ह्, व
(ग) य्, र्, ल्, व्
(घ) य्, र्, व्, ह्

उत्तराणि:
(ग) य्, र्, ल्, व्

(क) श्, ष्, स्, व्
(ख) श्, ष्, स्, ह्
(ग) श्, ष्, ह्, र्
(घ) श्, ष्, र्, ह्

उत्तराणि:
(ख) श्, ष्, स्, ह्

(क) उपध्मानीय
(ख) स्पर्श
(ग) मानीय
(घ) उष्म

उत्तराणि:
(क) उपध्मानीय

क, ख, च, घ, ङ

उत्तराणि:

(क) 20
(ख) 35
(ग) 25
(घ) 15 उत्तराणि: (ग) 25

(क) ल् अन्तस्थः वर्णः अस्ति।
(ख) ह् उष्मवर्णः अस्ति।
(ग) आ ह्रस्वस्वरः अस्ति।
(घ) न अनुनासिकवर्णः अस्ति।

उत्तराणि:
(ग) आ ह्रस्वस्वरः अस्ति।

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